श्रावण मास माहात्म्य

श्रावण मास माहात्म्य

श्रावण मास, जिसे सावन भी कहा जाता है, हिन्दू पंचांग के अनुसार वर्ष का पाँचवाँ मास होता है, जो विशेष रूप से भगवान शिव को समर्पित है। पुराणों में प्रायः सभी मासों का महत्व मिलता है परंतु वैशाख, श्रावण ,कार्तिक, मार्गशीर्ष, माघ तथा पुरुषोत्तम मास का विशेष महत्व दृष्टिगोचर होता है।  इन मासों (माह) की विशेष चर्चा तथा दान, जप, तब, अनुष्ठान का विस्तृत वर्णन ही नहीं प्राप्त होता अपितु उसका यथाशक्ति पालन करने वाले बहुत से लोग आज भी विद्यमान है । सभी मासों  में श्रावण मास विशेष है । श्रावण मास (माह ) भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है।  इसका महत्व सुनने योग्य है अतः इसे श्रावण कहा जाता है । इस मास में श्रावण नक्षत्र युक्त पूर्णिमा होती है, इस कारण भी इसे श्रावण कहा जाता है । इस माह का महत्त्व एवं कथा सुनने मात्र से कल्याण हो जाता है ।

इसमें धर्म, उपवास, व्रत और पूजा का विशेष महत्त्व होता है। इस मास में शिवलिंग पर जल, बेलपत्र, दूध, गंगाजल, धतूरा आदि अर्पण करने से विशेष पुण्य मिलता है। संपूर्ण माह शिवोपासना का काल: सावन के प्रत्येक सोमवार को सोमवार व्रत रखकर शिव की पूजा की जाती है। यह व्रत विशेषकर अविवाहित कन्याओं द्वारा उत्तम वर की प्राप्ति के लिए रखा जाता है। इस मास में ब्रह्मचर्य, संयम, सात्विक आहार और भक्ति का पालन अत्यंत शुभ माना जाता है।

मनुष्य जीवन अत्यंत दुर्लभ है । चौरासी लाख योनियों में भटकता हुआ प्राणी पापों से  मुक्त  होने पर भगवान की कृपा से दुर्लभ मनुष्य योनि में जन्म लेता है । मनुष्य-योनि को दुर्लभ इसलिए कहा जाता है क्योंकि अन्य योनियों अर्थात जन्मों में जहां केवल भोग ही भोग है, वही मनुष्य जीवन एक कर्म योनि है । ऐसा दुर्लभ अवसर पाकर भी यदि मनुष्य उसे व्यर्थ गँवा  दे अथवा पुनः अधोगति को प्राप्त हो जाए तो यह विडंबना ही होगी । इसलिए हमारे शास्त्रों में ऐसे विधि-विधानों  का वर्णन किया गया है जिससे मनुष्य अपने परम कल्याण का मार्ग प्रशस्त करते हुए मुक्ति की ओर अग्रसर हो सके ।

निष्काम भाव से व्यक्ति कभी भी भगवान की पूजा, जप, तब ,ध्यान आदि कर सकता है, परंतु सकाम अथवा निष्काम किसी भी भाव से कालविशेष में जप्, तप् , दान, अनुष्ठान आदि करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है ।

श्रावण मास चतुर मास के अंतर्गत होने के कारण उस समय वातावरण विशेष धर्म मय  रहता है।  जगह-जगह प्रवासी सन्यासी गणों द्वारा तथा विद्वान कथावाचकों द्वारा भगवान की चरित्र एवं कथाओं का वाचन होता रहता है।  श्रावण मास पर शिव मंदिरों में श्रद्धालुजनों की विशेष भीड़ रहती है।  प्रत्येक सोमवार को अनेक लोग वृत्त रखते हैं तथा प्रतिदिन भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं।

जो व्यक्ति मन और इंद्रियों को संयम में रखकर, भगवान शिव की भक्ति करता है एवं श्रावण मास को व्यतीत करता है, वह विभिन्न तीर्थ में स्नान करने के पुण्य फल से युक्त होता है और अपने कुटुंबीजनों की वृद्धि करता है।

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