“सिद्ध कुंजिका स्तोत्रम्” देवी उपासना का एक अत्यंत गोपनीय, शक्तिशाली और चमत्कारी स्तोत्र है। यह स्तोत्र दुर्गा सप्तशती (चंडी पाठ) का बीज, सार, और तंत्र-शक्ति रूप माना जाता है। साधक इसे पढ़कर पूर्ण दुर्गा सप्तशती का फल प्राप्त कर सकता है। शास्त्रों के अनुसार, सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ करने से वही फल प्राप्त होता है, जो सम्पूर्ण दुर्गा सप्तशती (700 श्लोक) के पाठ से होता है।
सिद्ध कुंजिका स्तोत्र में प्रमुख बीज मंत्र –
“ह्रीं”, “क्लीं”, “ऐं”, “चामुण्डायै”, “विच्चे” – का अत्यंत प्रभावी प्रयोग हुआ है। ये मंत्र ऊर्जा केंद्रों (चक्रों) को जाग्रत करते हैं।
|| सिद्ध कुंजिका स्तोत्र ||
। शिव उवाच ।
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्।
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः शुभोभवेत्।।१।।
न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम्।।२।।
कुञ्जिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्।
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम्।।३।।
गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति।
मारणं मोहनं वश्यं स्तंभोच्चाटनादिकम।
पाठमात्रेण संसिध्येत् कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्।।४।।
।। अथ मंत्रः ।।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे।।
ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।।
।। इतिमंत्रः।।
नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।
नमःकैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि।।१।।
नमस्ते शुम्भ हन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिनि।
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे।।२।।
ऐंकारी सृष्टिरुपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका।
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोस्तुते।।३।।
चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी।
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मन्त्ररूपिणि।।४।।
धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु।।५।।
हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः।।६।।
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं ।
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा।।७।।
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा।
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्र सिद्धिं कुरुष्व मे।।८।।
इदं तु कुंजिकास्तोत्रं मंत्र जागर्तिहेतवे।
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति।।
यस्तु कुंजिकया देवि हीनां सप्तशतीं पठेत्।
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा।।
इति श्रीरुद्रयामले गौरीतन्त्रे शिवपार्वतीसंवादे कुंजिकास्तोत्रं सम्पूर्णम्।
।। ॐ तत्सत्।।
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