श्रावण मास माहात्म्य – द्वितीय अध्याय

श्रावण मास माहात्म्य – द्वितीय अध्याय

श्री सूत जी महराज बोले की हे मुनियों अब श्रावण मास के द्वितीय अध्याय को सुनो,जिसमे भगवान शिव ने सनत्कुमार को इस पवित्र मास मे किए जाने वाले विभिन्न कर्मों, पूजन विधि , तिथियों के व्रत तथा सभी देवी-देवताओं की पूजन का वर्णन किया है ।

सनत्कुमार की प्रार्थना सुनकर भगवान भोलेनाथ ने कहा की हे पुत्र आप विनम्र, गुणी, श्रद्धालु तथा भक्ति संपन्न श्रोता है ।  आपने श्रावण मास के विषय में विनम्रता पूर्वक जो भी प्रश्न किए है , वह सब अत्यंत हर्ष तथा प्रेम के साथ मैं आपको बताऊंगा, अतः आप एकाग्रचित होकर सुनिए ।  

साधक योग्य कर्म :

हे योगिन, इस मास मै एक साधक को चाहिए कि वह श्रावणमास में नियमपूर्वक नतत्व्रत करे तथा पूरे महीने भर प्रतिदिन रुद्राभिषेक करें । अपनी प्रत्येक प्रिय वस्तु का इस माह में त्याग कर ,पुष्पो, फलों ,धानयों, तुलसी की मंजरी, तथा विलपत्रों से  नित्यप्रति  शिवजी की पूजा करे ।

श्रावण मास शिव भक्ति के लिएअति उत्तम है , इस काल में की गई भक्ति से भगवान शिव अवश्य ही प्रशन्न होते है एवं उत्तम फल प्रदान करते है , इसलिए एक भक्त को चाहिए की वह हमेशा ब्राह्मणों को भोजन कराए, महीने भर धारण-पारण नामक वृत्त अथवा उपवास करे तथा शिव को प्रिय  पंचामृत अभिषेक करें ।

 इस मास में जो जो शुभ कार्य किया जाता है वह अत्यंत फल देने वाला होता है।  मनुष्य को भूमि पर सोते हुए ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए, सदा सत्य वचन बोलना चाहिए  , पत्ते पर भोजन करना चाहिए तथा शाक का पूर्ण रूप से त्याग कर, भक्ति युक्त होकर महादेव की पूजन एवं किसी न किसी वृत्त अवश्य करना चाहिए, इससे महादेव तथा माता पार्वती अवश्य ही अपने भक्तों पर कृपा करते है ।

इस मास में किया गया पुरुश्चरण निश्चित रूप से मंत्रो की सिद्धि करने वाला होता है ।  शिव के पंचाक्षर मंत्र अथवा गायत्री मंत्र का जाप करना, वेद पारायण होकर शिवजी की प्रदक्षणा  एवं नमस्कार करना चाहिए । इस माह में पुरुष सूक्त का पाठ अधिक फल देने वाला होता है।

 यह सभी उत्तम फल प्रदान करने वाले कर्म है ।

इस समय किया गया गृहयज्ञ, कोटी होंम, लक्ष् होंम, तथा आयुक्त होंम शीघ्र ही फली भूत होता है और अभीष्ट फल प्रदान करता है । जो मनुष्य इस मास में एक भी दिन व्रतहीन व्यतीत करता है वह महाप्रलयपर्यंत घोर नरक में वास करता है । यह माह सकाम व्यक्ति को अभीष्ट फल देने वाला तथा निष्काम व्यक्ति को मोक्ष प्रदान करने वाला है ।

इस मास के वृत्त तथा धर्म :

श्री सुट जी कहराज बोले की हे मुनियों अब इस माह में किए जाने वाले व्रत एवं धर्म के बारे में जैसा भगवान शिव ने सनतकुमार को बताया, आप लोगभी ध्यान से सुनिए ।

रविवार को सूर्य व्रत तथा सोमवार को भगवान शिव की पूजा और नत्त्त भोजन करना चाहिए । श्रावण के प्रथम सोमवार से आरंभ करके साढ़े तीन महीने का रोटक नामक वृत्त किया जाता है।  यह सभी मनवांछित फल प्रदान करने वाला है ।  मंगलवार को मंगलागौरी का व्रत, बुध और बृहस्पतिवार को दिन बुध और बृहस्पति का व्रत , शुक्रवार को जीवंतिका व्रत और शनिवार को हनुमानजी तथा नरसिंह भगवान का व्रत करना चाहिए।

हे मुनियों , अब तिथियां के बारे में श्रवण करें । श्रावण की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को ओदुमंबर नामक वृत्त होता है।  श्रावण की शुक्लपक्ष की तृतीया तिथि को गौरी व्रत होता है । इसीप्रकार शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि को दूर्वागणपति नामक व्रत होता है।  इस चतुर्थी का दूसरा नाम विनायकी चतुर्थी भी है । शुक्ल पक्ष में पंचमी तिथि नागों के पूजन के लिए प्रसिद्ध होती है, इस पंचमी को रौरवकलपादी नाम से भी जाना जाता है ।

षष्ठी तिथि को सूपोदनव्रत और सप्तमी तिथि को शीतलाव्रत होता है ।  अष्टमी तथा चतुर्थी तिथि को देवी का पवित्रारोपण वृत्त होता है ।  इस माह के शुक्ल तथा कृष्ण पक्ष की दोनों नवमी तिथियों   को नत्तव्रत करना बताया गया है ।  शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को आशा नामक वृत्त होता है।

 इस मास में दोनों पक्षों में दोनों एकादशी तिथियों के वृत की कुछ और विशेषता मानी गई है ।  श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को श्री विष्णु का पवित्रारोपण व्रत बताया गया है ।  इस द्वादशी तिथि में भगवान श्रीधर की पूजा करके मनुष्य परम गति प्राप्त करता है ।

उत्सर्जन, उपाक्रम, सभादीप ,सभा में उपकर्म , इसके बाद रक्षाबंधन, पुनः  श्रावण कर्म , सर्पबली और हयग्रीवा  का अवतार — यह सब कर्म पूर्णमासी तिथि को करने चाहिए ।

 श्रावण मास के कृष्णपक्ष में चतुर्थी तिथि को संकष्ट-चतुर्थी व्रत कहा गया है और श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि को मानवकल्पादी नामक व्रत से जानना चाहिए ।  कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को श्री कृष्ण का पूर्ण-अवतार हुआ था अतः इस दिन को महान उत्सव के साथ कृष्ण जन्माष्टमी व्रत मनाना चाहिए। इस तिथि को मन्वादी तिथि से भी जाना जाता है ।

 श्रावण मास की अमावस्या तिथि को पिठोरा व्रत मान कहा जाता है ।  इस तिथि में कुषों का ग्रहण और व्रषभो का पूजन किया जाता है ।

श्रावण मास के देवी- देवता :

इसी मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से लेकर सब तिथियां के पृथक पृथक देवता हैं प्रतिपदा तिथि के देवता अग्नि, द्वितीया तिथि के ब्रह्मा, तृतीया की गोरी ,चतुर्थी के देवता गणपति हैं, पंचमी के देवता नाग हैं सष्टि के देवता कार्तिकेय, सप्तमी के देवता सूर्य और अष्टमी तिथि के देवता शिव हैं।  नवमी की देवी दुर्गा ,दशमी के देवता यम, एकादशी तिथि के देवता विश्वेदेव हैं । द्वादशी के विष्णु तथा त्रयोदशी के देवता कामदेव माने गए हैं ।  चतुर्दशी के देवता शिव, पूर्णिमा के देवता चंद्रमा, अमावस्या के देवता पितर हैं; यह तिथियां के देवता कहे गए हैं, जिस देवता की जो तिथि हो उसे देवता की इस तिथि में पूजा करनी चाहिए ।

प्राय इसी मास में अगस्त का उदय होता है; सूर्य के सिंह राशि में प्रवेश करने के दिन से जब बारह अंश चालीस घड़ी व्यतीत हो जाता है तब अगस्त का उदय होता है।  उसके साथ दिन पूर्व से अगस्त को अर्ग प्रदान करना चाहिए । बारह  मासो में सूर्य पृथक-पृथक नाम से जाने जाते हैं । उनमें से श्रावण मास में सूर्य गभस्ति नाम वाला होकर तपते हैं ।  इस मास में मनुष्यों को भक्ति संपन्न होकर सूर्य की पूजा करनी चाहिए ।

चार मासों में वर्जित वस्तुएं :

श्रावण में साक तथा भाद्रपद में दही का त्याग कर देना चाहिए, इसी प्रकार आश्विन में दूध और कार्तिक में दाल का परित्याग कर देना चाहिए ।  यदि किसी कारणवश इन मासो में इन वस्तुओं का त्याग नहीं कर सकते तो टेबल श्रावण मास में ही उक्त वस्तुओं का त्याग करने से मानव उत्तम फल को प्राप्त कर लेता है ।

श्री सूत जी कहते है की : इस मास के व्रत और धर्म के विस्तार को तो सैकड़ो वर्षों में भी नहीं कहा जा सकता ।  भगवान शिव तथा विष्णु की प्रसन्नता के लिए संपूर्ण रूप से व्रत करना चाहिए । इन दोनों में कोई भेद नहीं है , जो लोग भेद करते हैं वह नर्क गामी होते हैं अतः श्रावण मास में धर्म का आचरण करना चाहिए ।

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