पुरुष सूक्तम् एक अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण वैदिक स्तोत्र है, जो ऋग्वेद (मंडल 10, सूक्त 90) में वर्णित है। यह सूक्त सृष्टि की उत्पत्ति, विराट पुरुष (परमात्मा) की महिमा और ब्रह्मांड के संगठन को दर्शाता है। इसका पाठ वेदपाठी ब्राह्मण, कर्मकांड, यज्ञ, पूजन और ध्यान में करते हैं।
पुरुष सूक्तम् (संस्कृत में मूल पाठ)
ॐ तच्छं योरावृणीमहे। गातुं यज्ञाय। गातुं यज्ञपतये।
दैवीं स्वस्तिरस्तु नः। स्वस्तिर्मानुषेभ्यः।
ऊर्ध्वं जिगातु भेषजं। शं नो अस्तु द्विपदे। शं चतुष्पदे॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥
सहस्रशीर्षा पुरुषः। सहस्राक्षः सहस्रपात्।
स भूमिं विश्वतो वृत्वा। अत्यतिष्ठद्दशाङुलम्॥
पुरुष एवेदं सर्वं। यद्भूतं यच्च भव्यम्।
उतामृतत्वस्येशानो। यदन्नेनातिरोहति॥
एतावानस्य महिमाऽतो ज्यायांश्च पूरुषः।
पादोऽस्य विश्वा भूतानि। त्रिपादस्यामृतं दिवि॥
त्रिपादूर्ध्व उदैत्पूरुषः। पादोऽस्येहाभवत्पुनः।
ततो विष्वङ्व्यक्रामत्साशनानशने अभि॥
तस्माद्विराळजायत। विराजो अधि पूरुषः।
स जातो अत्यरिच्यत। पश्चाद्भूमिमथो पुरीः॥
यत्पुरुषेण हविषा। देवा यज्ञमतन्वत।
वसन्तो अस्यासीदाज्यम्। ग्रीष्म इध्मः शरद्धविः॥
सप्तास्यासन्परिधयः। त्रिः सप्त समिधः कृताः।
देवा यद् यज्ञं तन्वानाः। अबध्नन् पुरुषं पशुम्॥
तं यज्ञं बर्हिषि प्रौक्षन्। पुरुषं जातमग्रतः।
तेन देवा अयजन्त। साध्या ऋषयश्च ये॥
तस्माद्यज्ञात्सर्वहुतः। सम्भृतं पृषदाज्यम्।
पशून्ताँश्चक्रे वायव्यान्। आरण्याँ ग्राम्याश्च ये॥
तस्माद्यज्ञात्सर्वहुतः। ऋचः सामानि जज्ञिरे।
छन्दांसि जज्ञिरे तस्मात्। यजुस्तस्मादजायत॥
तस्मादश्वा अजायन्त। ये के चोभयादतः।
गावो ह जज्ञिरे तस्मात्। तस्माज्जाता अजावयः॥
यत्पुरुषं व्यदधुः। कतिधा व्यकल्पयन्।
मुखं किमस्य कौ बाहू। कावूरू पादा उच्येते॥
ब्राह्मणोऽस्य मुखमासीद्। बाहू राजन्यः कृतः।
ऊरूतदस्य यैश्यः। पद्भ्यां शूद्रो अजायत॥
चन्द्रमा मनसो जातः। चक्षोः सूर्यो अजायत।
मुखादिन्द्रश्चाग्निश्च। प्राणाद्वायुरजायत॥
नाभ्याः आसीदन्तरिक्षम्। शीर्ष्णो द्यौः समवर्तत।
पद्भ्यां भूमिर्दिशः श्रोत्। तथा लोकाँ अकल्पयन्॥
वेदाहमेतं पुरुषं महान्तम्। आदित्यवर्णं तमसस्तु पारे।
सर्वाणि रूपाणि विचित्य धीरः। नामानि कृत्वाऽभिवदन्यदास्ते॥
धाता पुरस्ताद्यमुदाजहार। शक्रः प्रविद्वान्प्रदिशश्चतस्रः।
तमेवं विद्वानमृत इह भवति। नान्यः पन्था अयनाय विद्यते॥
पुरुष सूक्तम् का भावार्थ (संक्षेप में):
- विराट पुरुष की महिमा: यह सूक्त विराट पुरुष (ब्रह्मांडीय आत्मा या परमेश्वर) की कल्पना करता है जो सहस्र नेत्रों, चरणों और सिरों वाला है। वह सम्पूर्ण सृष्टि में व्याप्त है।
- सृष्टि की उत्पत्ति: यज्ञ के रूप में परम पुरुष के अंगों से ब्रह्मा ने विभिन्न वर्ण, प्राणी, ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अश्व, गौ आदि का निर्माण किया।
- वर्ण व्यवस्था का वर्णन: ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र का उत्पत्ति वर्णन पुरुष के विभिन्न अंगों से किया गया है।
- यज्ञ के माध्यम से सृष्टि का संचालन: सूक्त यज्ञ को सृष्टि का आधार बताता है, जिससे देव, ऋषि और प्राणी उत्पन्न हुए।
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